
सभाओं के बाद
शहर में रोज़ सभाएँ होती हैं इन दिनों
मरुस्थल के निकट पीले पत्तों के बीच
सभाओं में उन्हें अपनी ही कही
बातों कोसत्य साबित करने की चिंता होती बस
हमें दुष्ट घोषित करते वे बार-बार
सभाओं में और साा स्थल के बाहर
सभाओं में और साा स्थल के बाहर
यही समय है बिलकुल यही समय उनके लिए
वे सबसे मौलिक शैली में
असंख्य पक्षियों को मारते
असंख्य वृक्षों को काटते
असंख्य घरों को उजाड़ते
असंख्य तस्वीरों को फाड़ते
असंख्य पक्षियों को मारते
असंख्य वृक्षों को काटते
असंख्य घरों को उजाड़ते
असंख्य तस्वीरों को फाड़ते
असंख्य-असंख्य शब्दों के साथ करते बलात्कार तन्मय
सभाओं के बाद अमात्य-महामात्य
मुस्काते हौले-हौले एकदम असामाजिक
हमारे समय के रुदन पर।
मुस्काते हौले-हौले एकदम असामाजिक
हमारे समय के रुदन पर।
मैं भी कहूँगा
मैं भी कहूँगा,वंदे मातरम्
जैसे कि कहती हैं लता मंगेश्कर
जैसे कि कहते हैं ए आर रहमान
किसी गृहमंत्री
किसी सरसंघचालक
किसी पार्टी अध्यक्ष के कहने से नहीं कहूँगा मैं
वंदे मातरम्।
जाड़ा
जैसे कि कहती हैं लता मंगेश्कर
जैसे कि कहते हैं ए आर रहमान
किसी गृहमंत्री
किसी सरसंघचालक
किसी पार्टी अध्यक्ष के कहने से नहीं कहूँगा मैं
वंदे मातरम्।
जाड़ा
आज सबसे अधिक क्रोधित हुआ वह गँूगा
सबसे अधिक गुस्साई वह औरत
सबसे अधिक झल्लाया वह रिक्शावाला
आज हड्डियाँ बजती थीं उनकी चतुर्दिक
सबसे अधिक गुस्साई वह औरत
सबसे अधिक झल्लाया वह रिक्शावाला
आज हड्डियाँ बजती थीं उनकी चतुर्दिक
आज अचानक सब
सिर्फ़ क्रोधित हुए
सिर्फ़ गुस्साए
सिर्फ़ झल्लाए
शिविर में
इस भूखंड़ पर।
(उनके ताज़ा कविता-संग्रह ‘वितान’ से साभार)
शहंशाह आलम का क्रोध बेहद रचनात्मक है। सार्थक रचनाएँ उपलब्ध कराने के लिए आभार !
ReplyDeleteबेहद चुप्पी से भरे समय में प्रतिरोध का यह स्वर ... स्तुत्य है भाई !
ReplyDeleteशब्द शक्ति के माध्यम से आप ब्लाग जगत में एक उम्दा काम कर रहे हैं। बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता हैं।वे अच्छी कवितायें लिखते है ।उनका संज्ञान नही लिया गया है ।
ReplyDeleteआभार
ReplyDelete👋 शहंशाह आलम