Thursday, July 22, 2010

परमेन्द्र सिंह की कविताएँ


मेरा दुःख
मेरा दुख मिटा नहीं
खो गया -
अख़बार की ख़ूनी ख़बरों में
उबलती नदियों पर जमी बर्फ़ में


मेरा
दुःख मिटा नहीं
कट गया -
बच्चों की दूधिया हँसी से
किसान की दराँती से


मेरा दुःख मिटा नहीं

बदल गया -
विज्ञापन में और बिक गया।

लगभग जीवन

अधिकांश लोग जी रहे हैं
तीखा जीवन
लगभग व्यंग्य
अधिकांश बँट गए से बचे
लगभग जीवन में

अधिकांश पर
बैठी मृत्यु

लगभग स्वतंत्र
अधिकांश लोगों में
स्वतंत्र होने की चाह

स्वतंत्रता के बाद भी


लगभग नागरिकों की
अधिकांशतः श्रेष्ठ नागरिकता
लोकतंत्र का लगभग निर्माण कर चुकी है
अधिकांश लोग लगभग संतुष्ट हैं
शेष अधिकांश से लगभग अधिक हैं।

9 comments:

  1. अच्छी कविताएं।
    मुजफ्फरनगर से हमारा भी रिश्ता रहा है। 1984-85 के दौर में एसडी पीजी कालेज के हास्टल में बसेरा था।

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  2. परमेन्द्र सिंह एक अच्छे कवि हैं । अगर लगातार लिखते रहे तो कवि के रूप में नाम होगा इनका ।

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  3. परमेन्द्र सिंह जी को पढ़कर अच्छा लगा.

    आपका आभार पढ़वाने का.

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  4. बेहतर कविताएं...
    आभार आपका...

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  5. बहुत बढ़िया।
    परमेन्द्र सिंह की कवितायें बहुत अच्छी हैं।

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  6. ब्‍लॉग की दुनिया में स्‍वागत है... परमेन्‍द्र सिंह की दोनों छोटी-छोटी कविताएं पठनीय है.

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  7. गोके अपना यार है और यह कहते संकोच होता है, पर परमेन्द्र की कविताओं में एक बात है. ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत .

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  8. स्वागत. सुन्दर कविताएं.

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