Saturday, October 2, 2010

शिवकुमार समन्वय की कविताएँ

एक -
एक बार
जब मैंने
छत पर रखी
आवारा मटकी को
यों ही
पानी से भर दिया था
और मेरे कुछ दूर हटते ही
छोटी-काली चिड़िया ने
उसमें
कई बार चोंच-भर
पानी पिया था
क्या बताऊँ
वो जो
आह्लाद मुझमें गूँजा था
नानी के घर पहुँचे
अपने बच्चे की याद
मुझे आयी थी।

दो -
एक बार
मार डाला था
गुरुजी ने
अर्धरात्रि में ही
बाँग देनेवाले मुरगे को
अब पूछूँगा मैं
मिलने पर गुरुजी से
कि क्या करूँ
रिश्वतखोर मुलाजिम का
क्या करूँ
पेड़ ही काट डालनेवाले
लकड़हारे का
इलाज लम्बा खींचने वाले डाक्टर का
क्या करूँ
व्यापारी शिक्षक का
नियम तोड़ते वाहन-चालक का
क्या करूँ नदी में गिरते नाले का
शायद ढूँढ़ नहीं पाऊँगा गुरुजी को
मिल भी गये तो
क्या पूछ पाऊँगा यह सब
क्योंकि इस पूरे चित्र में
कभी मैं चित्रकार हूँ
कभी कूँची हूँ
कभी रंग हूँ
कभी कैनवस मैं हूँ।

(शिवकुमार युवा रचनाकार हैं। मुजफ्फरनगर में पत्थर का व्यवसाय करते हैं। कविता छपवाने के मामले में बेहद संकोची हैं।)

2 comments:

  1. इन कविताओं में बेहद मासूमियत है और स्वांत सुखायः के लिए रची गई हैं।

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  2. इन कविताओं में बेहद मासूमियत है और स्वांत सुखायः के लिए रची गई हैं।

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