Sunday, December 12, 2010

गुनगुना रहा है डीयर पार्क : रमेश प्रजापति


गनीमत है कि
टुकड़ा-टुकड़ा बिखरी जिन्दगी को समेटने में
मैं अभी जिंदा हूँ समय की भयावहता के बीच
और चाहता हूँ खुलकर हँसना
काल की निर्दयता पर
एक पूरी साहित्यिक दुनिया है डीयर पार्क
और इस दुनिया में ध्रुव तारे की तरह
चमकते हैं पंड़ित विश्वनाथ त्रिपाठी

बाज़ारवाद के शोर में मानवता की उर्वरा भूमि
धीरे-धीरे होती जा रही है बंजर
टेढ़े-मेढ़े जीवन के रास्ते
आज कुछ ज्यादा ही हो गए हैं कठोर
पर दिलशाद गार्डन के ‘डीयर पार्क’ का रास्ता
खुलता है अभी भी हमारे घर की ओर
झिलमिला रहा है आँखों में
अपनेपन से भरे
मुस्कुराते रहते हंै पंडित विश्वनाथ त्रिपाठी

सुबह काम पर निकले व्यक्ति की प्रतीक्षा में
घरभर की आँखें बिछ जाती हैं जब
शाम के धुँधलके में डूबे रास्तों पर
बढ़ जाती है हमारी चिंतामग्न चहलकदमी
इस विद्रूप समय में ‘डीयर पाकर्’ में बैठे सभी संगी-साथी
बँधाते हंै एक-दूसरे का धीरज
और दुनिया को देखते है अपनी नज़रों से
दरअसल डियर पार्क से दूर होना
दुनिया से दूर होना है


जबकि घृणा का कोई स्थान नहीं जीवन में
परंतु सच को सच कहना बन जाती है जब गले की हड्डी
तब आत्मा के लहू से
कपड़ों पर बिखर जाते हैं सूर्ख छींटे
ग्लानि के समुद्र में उठतीं-गिरतीं लहरों पर
आहत होता रहता है डीयर पार्क

साहित्य में आई क्रूर हवाओं पर उँगली उठाते
डीयर पार्क की हरियाली पर बैठे
कुछ दोस्त
बखूबी समझते हैं अपनी जिम्मेवारी
दुःखों के गहरे अंधकार में भी
परछाईं की तरह नहीं विलुप्त होता डीयर पार्क
और हम सब का प्यारा दोस्त
झकझोर कर झुटपुटे की चादर
झिलमिला देता है हमारे हिस्से के अँधेरे की सघनता

तमाम सामाजिक विद्रूपताओं के बावजूद
गनीमत है कि
सही-सलामत घूम रही है धरती
अपनी धुरी पर
दिशाएँ टिकी हैं अपनी जगह पर
पेड़ गा रहे है हरियाली का गीत
आदमी के स्वप्न में चहक रही है चिड़ियाएँ
और अपनी सौम्यता के साथ
गुनगुना रहा है अभी भी
दिलशाद गार्डन का डीयर पार्क!

11 comments:

  1. बेहतरीन...
    तमाम विद्रूपताओं के बावजूद....
    चहक रही हैं चिड़ियाएं...

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  2. hamesha ki tarha ek aur bahut achi rachna.

    Badhai

    Ashwani Khandelwal

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  3. ek deer park hauz khas me bhi hai...........:)

    khubsurat abhivyakti........

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  4. वाह ! कविता के माध्यम से हर पहलू दर्शा दिया।

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  5. ‘गुनगुनाता रहा है डीयर पार्क’ - बढ़िया कविता, अपनी जिम्मेदारी समझता डीयरपार्क का माहौल यूँ ही गुनगुनाता रहे।

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  6. अच्छी प्रस्तुति ! रमेश को आशीर्वाद !

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  7. एक अच्छी कविता ! सधी हुई भाषा में अपनी बात कहती हुई।

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  8. सुन्दर कविता पढ़वाने के लिए आभार !

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