Friday, July 30, 2010

अश्वघोष की कविताएं




सदियों से भूखी औरत
सदियों से भूखी औरत करती है सोलह सिंगार
पानी भरी थाली में देखती है चन्द्रमा की परछाईं
छलनी में से झाँकती है पति का चेहरा
करती है कामना दीर्घ आयु की

सदियों से भूखी औरत
मन ही मन बनाती है रेत के घरौंदें
पति का करती है इन्तज़ार
बिछाती है पलकें
ऊबड़ खाबड़ पगडण्डी पर
हर व़क्त गाती है गुणगान पति का
बच्चों में देखती है उसका अक्स

सदियों से भूखी औरत
अन्त तक नहीं जान पाती उस तेन्दुए की प्रवृति
जो करता रहा है शिकार
उन निरीह बकरियों का
आती रही हैं जो उसकी गिरफ्त में
कहीं भी किसी भी समय।



ग़ज़ल-१
जो भी सपना तेरे-मेरे दरमियाँ रह जाएगा
बस वही इस ज़िंदगी का दास्ताँ रह जाएगा

कट गए हैं हाथ तो आवाज़ से पथराव कर
याद सबको यार मेरे ये समाँ रह जाएगा।

भूख है तो भूख का चर्चा भी होना चाहिए
वर्ना घुटकर सबके मन में ये धुआँ रह जाएगा।

ये धुँधलके हैं समय के, सोचकर परवाज़ कर
यों ही बादल फट गया गर, तू कहाँ रह जाएगा।

जो भी पूछे तो अदालत, बोल देना बेझिझक
तू रह पाया तो क्या, तेरा बयाँ रह जाएगा।


ग़ज़ल -
सिलसिला ये दोस्ती का हादसा जैसा लगे
फिर तेरा हर लफ़्ज़ मुझको क्यों दुआ जैसा लगे।

बस्तियाँ जिसने जलाई मज़हबों के नाम पर
मजहबों से शख़्स वो इकदम जुदा जैसा लगे।

इक परिंदा भूल से क्या गया था एक दिन
अब परिंदों को मेरा घर घोंसला जैसा लगे

घंटियों की भाँति जब बजने लगें खामोशियाँ
घंटियों का शोर क्यों जलजला जैसा लगे।

बंद कमरे की उमस में छिपकली को देखकर
ज़िन्दगी का ये सफ़र इक हौसला जैसा लगे।

3 comments:

  1. सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार.

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  2. bahut-bahut aabhar itnee khoobasoorat gazalen padhwane hetu..sadhuwad aadarniy Ramesh ji !

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  3. बालसाहित्य में उनका बचपन के प्रति अनुराग सर्वत्र झाँकता है और इन कविताओं में उनके गंभीर व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। सच्चे अर्थों में वे हरफनमौला साहित्यकार हैं। उनकी बाल कविताओं का चित्रांकन मेरे लिए गौरव का विषय है।

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